कच्चे तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव और विदेशी पूंजी की निरंतर निकासी के कारण सोमवार को एक महीने में सबसे खराब एकल-दिन के पतन अंतरबैंकिंग मुद्रा बाजार में रुपया 38 पैसे टूटकर 87.33 रुपये प्रति डॉलर पर बंद हुआ।

  एक महीने में सबसे खराब एकल-दिन के पतन  87.33 रुपये पर पहुचा 

 घरेलू शेयर बाजार में बिकवाली से धारणा पर प्रतिकूल असर पड़ा। 
पिछले महीने श्रमिकों की औसत प्रति घंटा आय में 0.3 प्रतिशत की वृद्धि
बेरोजगारी दर थोड़ी बढ़कर 4.1 प्रतिशत हो गई।

कानपुर 9, मार्च, 2025 
9, मार्च, 2025  नई दिल्ली: दुनिया भर में शुल्क दरों को लेकर अनिश्चितता के बीच कच्चे तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव और विदेशी पूंजी की निरंतर निकासी के कारण सोमवार को अंतरबैंकिंग मुद्रा बाजार में रुपया 38 पैसे टूटकर 87.33 रुपये प्रति डॉलर पर बंद हुआ। मुद्रा कारोबारियों ने कहा कि कमजोर अमेरिकी मुद्रा स्थानीय मुद्रा को सहारा देने में विफल रही घरेलू शेयर बाजार में बिकवाली से धारणा पर प्रतिकूल असर पड़ा।
अंतरबैंक विदेशी मुद्रा बाजार में रुपया गिरावट के साथ 87.24 रुपये प्रति डॉलर पर खुला और दिन के निचले स्तर 87.36 रुपये तक चला गया। कारोबार के दौरान यह 87.16 रुपये प्रति डॉलर पर बंद होने से पहले पिछले बंद स्तर से 38 पैसे की गिरावट दर्ज करते हुए 87.33 अंक (अनंतिम) पर बंद हुआ।
इससे पहले पांच फरवरी को डॉलर के मुकाबले रुपया 39 पैसे की भारी गिरावट दर्ज कर चुका है।
शुक्रवार को रुपया 17 पैसे की बढ़त के साथ 86.95 रुपये प्रति डॉलर पर बंद हुआ था।
इस बीच छह प्रमुख मुद्राओं के मुकाबले अमेरिकी डॉलर की स्थिति को दर्शाने वाला डॉलर सूचकांक 0.15 प्रतिशत की गिरावट के साथ 103.65 पर था। ब्रेंट कच्चा तेल वायदा बाजार में 0.28 प्रतिशत बढ़कर 70.56 डॉलर प्रति बैरल पर चल रहा था। घरेलू शेयर बाजार 30 शेयरों वाला बीएसई सेंसेक्स 217.41 अंक या 0.29 प्रतिशत की गिरावट के साथ 74,115.17 पर और निफ्टी 92.20 अंक या 0.41 प्रतिशत की गिरावट के साथ 22,460.30 पर बंद हुआ।
शेयर बाजार के अस्थायी आंकड़ों के मुताबिक विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) ने शुक्रवार को सकल आधार पर 2,035.10 करोड़ रुपये के शेयर बेचे।
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) द्वारा शुक्रवार को जारी ताजा आंकड़ों के अनुसार देश का विदेशी मुद्रा भंडार 28 फरवरी को समाप्त सप्ताह में 1.781 अरब डॉलर घटकर 638.698 अरब डॉलर रह गया।इससे पिछले सप्ताह में कुल विदेशी मुद्रा भंडार 4.758 अरब डॉलर बढ़कर 640.479 अरब डॉलर हो गया था।
वैश्विक वृहद आर्थिक स्थिति के बारे में अमेरिकी श्रम विभाग के शुक्रवार के आंकड़ों के अनुसार कि फरवरी में नियुक्ति गतिविधियों में वृद्धि हुई है परन्तु बेरोजगारी दर थोड़ी बढ़कर 4.1 प्रतिशत हो गई।
अर्थशास्त्रियों का कहना है कि राष्ट्रपति डोनाल्ड द्वारा व्यापार युद्ध की धमकी देने और संघीय कार्यबल को शुद्ध करने के साथ दृष्टिकोण बादल बना हुआ है।
अर्थशास्त्रियों का अनुमान है कि पिछले महीने श्रमिकों की औसत प्रति घंटा आय में 0.3 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जो जनवरी में 0.5 प्रतिशत की वृद्धि से कम है। फेड द्वारा इस गिरावट का स्वागत किया जाएगा, लेकिन यह इतनी नहीं है कि केंद्रीय बैंक 18-19 मार्च को होने वाली अपनी अगली बैठक में दरों में कटौती कर दे।
 सीएमई समूह के फेडवाच टूल के अनुसार, वॉल स्ट्रीट के व्यापारी मई तक एक और कटौती की उम्मीद नहीं कर रहे हैं, और वे इसके बारे में विशेष रूप से आश्वस्त नहीं हैं।
अर्थशास्त्रियों का कहना है कि आर्थिक परिदृश्य और अधिक अनिश्चित होता जा रहा है, क्योंकि ट्रम्प आयातित वस्तुओं पर अनेक कर लगा रहे हैं या लगाने की धमकी दे रहे हैं।
बूसौर ने कहा कि टैरिफ में भारी वृद्धि से व्यावसायिक निर्णयों में समायोजन हो सकता है, जिसका असर नियुक्ति और वेतन पर पड़ सकता है, क्योंकि व्यावसायिक नेता उच्च इनपुट लागत और प्रतिशोधात्मक उपायों से निपटते हैं। इससे नौकरियों में और अधिक मंदी, कम आय और बहुत अधिक मुद्रास्फीति के बीच उपभोक्ता खर्च में कमी आ सकती है।

सीतापुर के पत्रकार राघवेंद्र बाजपेई की हत्या एक गंभीर एवं चिंताजनक पुलिस ने चार विशेष जांच टीमें गठित की । अदालत में मामला त्वरित सुनवाई के लिए भेजा और आवश्यक कार्रवाई की जाएगी

राघवेंद्र बाजपेई की हत्या एक गंभीर अपराध जो पत्रकारिता की स्वतंत्रता और सुरक्षा को प्रभावित करता है
हमले के लिए 315 बोर व 311 बोरदेशी पिस्टल का इस्तेमाल किया गया है.
घटना को सुनियोजित तरीके से अंजाम दिया गया.
चार लेखपालों समेत कुल 12 संदिग्धों से पूछताछ की जा रही है


कानपुर 10, मार्च, 2025
10, मार्च, 2025 सीतापुर के पत्रकार राघवेंद्र बाजपेई की हत्या एक गंभीर एवं चिंताजनक है। शनिवार, 30 सितंबर 2023 को, उन्हें दिनदहाड़े गोली मारकर हत्या कर दी गई। यह घटना सीतापुर-लखनऊ राष्ट्रीय उच्च मार्ग (NH-30) पर इमलिया सुल्तानपुर के हेमपुर रेलवे क्रॉसिंग के पास हुई थी। हमलावरों ने राघवेंद्र की बाइक को टक्कर मारने के बाद उन पर अंधाधुंध फायरिंग की, जिससे उनकी मौत हुई.
हत्या के बाद पुलिस ने मामले की जांच तेज कर दी है। सूचना के आधार पर चार लेखपालों समेत कुल 12 संदिग्धों से पूछताछ की जा रही है, जिनमें से कुछ को हिरासत में लिया गया है इसके अलावा, इलाके में सक्रिय CCTV फुटेज भी देखे जा रहे और 18,000 मोबाइल नंबरों की जांच की जा रही है
राघवेंद्र ने हाल ही में धान खरीद में भ्रष्टाचार और जमीन खरीद-फरोख्त के मामलों को उजागर करने वाली कई खबरें प्रकाशित की थीं। यह माना जा रहा है कि इन रिपोर्टों के कारण उन्हें जान से मारने की धमकी मिली थी, जिन्हें उन्होंने अपने परिजनों के साथ साझा किया था । क्षेत्र के लोगों में भारी आक्रोश है। राघवेंद्र के परिवार ने उनके अंतिम संस्कार से पहले पुलिस कार्रवाई की मांग की थी। प्रदर्शन के दौरान परिजनों और पुलिस के बीच झड़प भी हुई थानाप्रभारी और अन्य अधिकारियों ने आईजी रेंज प्रशांत कुमार से मुलाकात कर जमीनी स्थिति की जानकारी ली। उपमुख्यमंत्री ने वादा किया है कि सभी आरोपियों को गिरफ्तार किया जाएगा).
हत्या की घटना से पहले के CCTV फुटेज में राघवेंद्र की बाइक के पीछे एक काले रंग की थार कार और दो बाइक सवार युवक दिख रहे उनके पीछे दिख रहे हैं, । यह संकेत देता है कि हमलावर पहले से ही राघवेंद्र का पीछा कर रहे थे).
इस मामले की तात्कालिकता को देखते हुए, पुलिस ने इसके अनावरण के लिए चार विशेष जांच टीमें गठित की हैं। अदालत में मामला त्वरित सुनवाई के लिए भेजा जाएगा, और आवश्यक कार्रवाई की जाएगी
राघवेंद्र बाजपेई की हत्या एक गंभीर अपराध है जो पत्रकारिता की स्वतंत्रता और सुरक्षा को प्रभावित करता है। यह घटना केवल व्यक्तिगत हानि नहीं है, बल्कि समाज की स्थिति और कानून-व्यवस्था पर प्रश्न उठाती है। मामले की तेजी से सुनवाई और न्याय की उम्मीद की जाती है ताकि ऐसे अपराधों को रोका जा सके।

वसीयत या वसीयतनामा एक कानूनी दस्तावेज, वसीयतकर्ता की इच्छाओं को व्यक्त करता है वसीयत को लेकर भारतीय जागरूक नहीं है र्निवसीयत स्वअर्जित संपत्ति पर बेटी का हक अन्य सदस्यों की अपेक्षा वरीयता होगी।

वसीयत या वसीयतनामा एक कानूनी दस्तावेज
कानपुर 10, मार्च, 2025
डा. लोकेश शुक्ल कानपुर 9450125954



वसीयत या वसीयतनामा एक कानूनी दस्तावेज होता है, जिसमें एक व्यक्ति (जिसे वसीयतकर्ता कहा जाता है) अपनी मृत्यु के बाद अपनी संपत्ति को कैसे विभाजित करना चाहता है, इस बारे में स्पष्ट निर्देश देता है। यह दस्तावेज़ वसीयतकर्ता की इच्छाओं को व्यक्त करता है और उनके जीवित रहने के दौरान बनायी जाती है। वसीयत का मुख्य उद्देश्य व्यक्ति के निधन पर संपत्तियों का वारिस निश्चित करनाऔर उन्हें कैसे वितरित किया जाएगा।
वह वसीयत से किसी एक या अधिक लोगों ही व्यक्ति को संपत्ति का अधिकार दे सकता है । र्निवसीयत मौत की स्थिति में संपत्ति का बंटवारा उत्तराधिकार कानूनों के अन्तर्गत होगा । यह उत्तराधिकारियों के बीच तनाव, अदावत, मुकदमेबाजी समेत तमाम जटिलताओं से भरा हो सकता है। र्निवसीयत मौत की स्थिति में संपत्ति पर किसका अधिकार होगा । वसीयत किसी शख्स को मौत के बाद अपनी विरासत सही हाथों में छोड़कर जाने की सहूलियत देता है। वसीयत एक कानूनी दस्तावेज है बताता है कि किसी वसीयतकर्ता की मौत के बाद उसकी संपत्ति कैसे और किनमें बांटी जाए और अगर कोई नाबालिग बच्चा है तो उसकी देखभाल कैसे होगा। जरूरी नहीं कि हर व्यक्ति मौत से पहले अपनी वसीयत लिखी ही हो। अगर किसी ने अपनी वसीयत लिखी है तो उसकी संपत्ति का बंटवारा उसकी इच्छा के हिसाब से ही होगा। लेकिन अगर उसने वसीयत नहीं की हो तो संपत्ति का बंटवारा उत्तराधिकार कानूनों के तहत होगा। अगर शख्स ईसाई, यहूदी या पारसी है तो भारतीय उत्तराधिकार कानून के तहत संपत्ति का बंटवारा होगा। अगर शख्स हिंदू, सिख, जैन या बौद्ध है तो हिंदू उत्तराधिकार कानून 1956 के तहत संपत्ति का बंटवारा होगा। इसी तरह अगर वह मुस्लिम हो तो मुस्लिम पर्सनल लॉ के हिसाब से उसकी संपत्ति का बंटवारा होगा।
वसीयत का महत्व
वसीयत बनाना महत्वपूर्ण है क्योंकि यह मृत्यु के बाद संपत्ति के वितरण को स्पष्ट करता है और परिवार में विवाद को रोकता है। वसीयत के माध्यम से वसीयतकर्ता अपनी संपत्तियाँ किसी भी व्यक्ति को दे सकता है, भले ही वह उसके रिश्तेदार न हो।
वसीयत के विभिन्न प्रकार
1. अंतिम वसीयत:
यह जीवन के बाद प्रभावी होती है। इसमें वसीयतकर्ता अपनी संपत्ति का विभाजन करता है, और यह तभी सक्रिय होती है जब वसीयतकर्ता की मृत्यु होती है।
2. जीवित वसीयत:
यह वसीयत उस समय प्रभावी होती है जब वसीयतकर्ता अपने विवेक से निर्णय करने में असमर्थ होता है (जैसे गंभीर बीमारी के समय) और यह चिकित्सा देखभाल से संबंधित होती है।वसीयतलिखने की व्यवस्था /वसीयत की प्रक्रिया
क्या कोई वसीयत बना सकता है: कोई भी व्यक्ति, जिसके पास संपत्ति हो, वसीयत बना सकता है। उसे मानसिक रूप से स्वस्थ होना चाहिए और इस प्रक्रिया की कानूनी समझ होनी चाहिए।कोई भी स्वस्थ दिमाग का वयस्क अपने शब्दों में वसीयत लिख सकता है। कानूनी और तकनीकी भाषा की आवश्यकता नहीं है। वसीयतनामा में वसीयतकर्ता की मंशा साफ और स्पष्ट लग रही है तो व्याकरण की अशुद्धता भी मायने नहीं रखती। वसीयत लिखने से पहले वसीयतकर्ता को अपनी संपत्तियों जैसे जमीन, अचल संपत्ति, बैंक जमा, शेयर, जीवन बीमा, सोना या अन्य निवेश वगैरह की लिस्ट बना अपनी संपत्ति किसे या किन-किन लोगों को देना चाहता लाभार्थियों को तय कर दो गवाहों जो वसीयत में लाभार्थी न हों तैयार करना चाहिये। इसके बाद निष्पादक नियुक्त करें। वसीयत का मसौदा तैयार करने के लिए किसी वकील की सेवाएं भी ले सकते हैं।किसी भी पेपर पर वसीयत को हाथ से या टाइप कर तैयार करना चाहिये । वसीयतनामे पर वसीयतकर्ता का और दो गवाहों के हस्ताक्षर होंगे। दस्तखत के वक्त दोनों गवाहों का शारीरिक रूप से एक साथ उपस्थित होना जरूरी है। आवश्यकता पड़ने पर गवाहों को अदालत में गवाही के लिए बुलाया जा सकता है। भारत में वसीयत का रजिस्टर्ड कराना जरूरी नहीं है लेकिन इसका रजिस्ट्रेशन बेहतर होगा। वसीयत में लिखे गए हर शब्द को वसीयतकर्ता का ही शब्द माना जाता है। दूसरी, तीसरी या चौथी वसीयत भी बना सकते हैं। लेकिन तब आपको पिछली सभी वसीयतों को निरस्तकर देना चाहिए। अलग-अलग समय के वसीयत में जो सबसे नवीन हो मान्य होगी।
वसीयत का पंजीकरण
वसीयत को एक साधारण कागज पर लिखा जा सकता है लेकिन इसे पंजीकृत करने से इसकी वैधता बढ़ जाती है। पंजीकरण प्रक्रिया में गवाहों की जरूरत होती है, और इसे सब-रजिस्ट्रार के कार्यालय में पूरी करना होता है।
वसीयत सुरक्षा और संशोधन
वसीयत को कभी भी वसीयतकर्ता की इच्छा से बदला या निरस्त किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त, विवाह जैसी परिस्थितियाँ वसीयत को अपने आप विघटित कर सकती हैं
वसीयत कौन लिख सकता है , क्यों लिखना आवश्यकता है
कोई भी बालिग स्वस्थ दिमाग व्यक्ति अपना वसीयत लिख सकता है। बहरा और गूंगा शख्स भी लिखित में या साइन लैंग्वेज के हाव-भाव के जरिए अपनी सहमति दिखाकर वसीयत लिख सकता है। वसीयत को लेकर भारतीय जागरूक नहीं है । अगर किसी वसीयतकर्ता ने वसीयत लिखी है तो उसकी संपत्ति उसकी इच्छानुसार ही बंटेंगी लेकिन अगर बिना वसीयत लिखे ही शख्स की मौत हो जाए तो जीवित रिश्तेदारों के सामने विकट समस्या खड़ी हो सकती है। उन्हें गैरजरूरी चिंता और तनाव, कानूनी झमेले, मुकदमेबाजी, कानूनी दांव-पेच वगैरह से जूझना पड़ सकता है। इन सबमें समय भी लगेगा और पैसे भी बर्बाद होते है । अच्छी तरह लिखी गई वसीयत वारिसों के बीच किसी भी तरह के टकराव की आशंका को खत्म करती है। बैंक जमाओं को लेकर बहुत से लोगों में ये भ्रम भी होता है कि उन्होंने नॉमिनी का नाम तो डाला ही है। जबकि नॉमिनी का मतलब उत्तराधिकारी नहीं होता। नॉमिनी किसी संपत्ति का अंतिम लाभार्थी नहीं होता वह सिर्फ संपत्ति का ट्रस्टी या केयरटेकर होता है। यानी व्यक्ति की मौत के बाद नॉमिनी उसकी बैंक जमाओं या निवेश का मालिक नहीं बल्कि केयरटेकर होता है।
सभी संपत्ति जिस पर मालिकाना हक लिख सकते हैं वसीयत लिख सकते हैं
अब सवाल उठता है कि कोई शख्स किस तरह की संपत्ति का वसीयत लिख सकता है। वसीयतकर्ता सभी संपत्ति जिस पर उसका मालिकाना हक है। यानी वह सिर्फ अपनी संपत्ति को ही वसीयत के जरिए हस्तांतरित कर सकता है। स्वअर्जित संपत्तियों के लिए वसीयत लिखी जा सकती है। अगर वसीयतकर्ता ने अपनी कमाई से कोई संपत्ति खरीदी है या उसे कोई संपत्ति उपहार में मिली हो या किसी वसीयत के जरिए मिली हो तो वह इन संपत्तियों के लिए वसीयत लिख सकता है। कोई शख्स पैतृक संपत्ति के बंटवारे के बाद मिली अपने हिस्से की संपत्ति के लिए भी वसीयत लिख सकता है। लेकिन अगर किसी संपत्ति पर वसीयतकर्ता का अधिकार नहीं है और उसने वसीयत में उसका भी जिक्र किया है तो ऐसी संपत्ति पर वसीयत अमान्य होगी। इसी तरह अगर किसी शख्स ने वसीयत के जरिए जिस व्यक्ति को अपनी संपत्ति देना चाहता है, उसी की मौत हो जाए तो वसीयत अमान्य हो जाती है। इसलिए वसीयत में कोशिश करनी चाहिए कि संपत्ति के उत्तराधिकारी में एक से ज्यादा का नाम दें। उसे ऐसे लिखा जा सकता है- मेरे गुजर जाने के बाद संपत्ति फलां के नाम की जाय और यदि फलां भी न रहे तो संपत्ति अमुक व्यक्ति को दी जाए।
मुस्लिम वसीयतकर्ता अपनी कुल संपत्ति के एक तिहाई से ज्यादा का नहीं कर सकता वसीयत
वसीयत को लेकर इस्लामिक कानून में एक बहुत ही सख्त नियम है। इस नियम के हिसाब से कोई मुस्लिम शख्स अपनी कुल संपत्ति का अधिक से अधिक एक तिहाई के लिए ही किसी के पक्ष में वसीयत लिख सकता है। अगर वह अपनी संपत्ति के एक तिहाई से ज्यादा के लिए वसीयत लिखना चाहता है तो उसे अपने सभी कानूनी उत्तराधिकारियों की सहमति लेनी होगी।
वसीयत में लाभार्थी रिश्तेदार होना जरूरी नहीं है
वसीयतकर्ता अपनी स्वअर्जित संपत्ति किसी अजनबी के पक्ष में वसीयत कर सकता है। अप्रैल 2022 में सर्वोच्च न्ययालय ने सरोजा अम्माल बनाम दीनदयालन व अन्य के मामले में ये महत्वपूर्ण फैसला दिया। सर्वोच्च न्ययालय ने कहा कि अगर वसीयत वैध तरीके से की गई है तो यह मायने नहीं रखता कि महिला मृत व्यक्ति की पत्नी है या नहीं। कोर्ट ने ये स्पष्ट किया कि कोई शख्स स्वअर्जित संपत्ति को जिसे चाहे उसे दे सकता है, भले ही वह अजनबी ही क्यों न हो। हिंदू उत्तराधिकार कानून में ऐसी कोई पाबंदी नहीं है कि अपनी संपत्ति का किसके पक्ष में वसीयत करे।
र्निवसीयत स्वअर्जित संपत्ति पर बेटी का हक अन्य सदस्यों की अपेक्षा वरीयता होगी। भतीजे का नहीं
सर्वोच्च न्ययालय ने 20 जनवरी 2022 को अपने एक ऐतिहासिक फैसले में पिता की संपत्ति पर बेटी के अधिकार की व्यवस्था की। जस्टिस अब्दुल नजीर और जस्टिस कृष्ण मुरारी की बेंच ने स्पष्ट किया कि बिना वसीयत के मृत हिंदू पुरुष की बेटियां पिता की स्व-अर्जित और अन्य संपत्ति पाने की हकदार होंगी और उन्हें परिवार के अन्य सदस्यों की अपेक्षा वरीयता होगी। र्निवसीयत मौत की दशा मे। मृतक का कोई बेटा नहीं था। उसकी इकलौती बेटी थी। उसकी मौत के बाद उसकी संपत्ति पर उसकी बेटी (उत्तराधिकार के आधार पर) के साथ-साथ भतीजों (उत्तरजीविता के आधार पर) दावा किया। सर्वोच्च न्ययालयने इस मामले में बेटी को संपत्ति का हकदार बताया। कोर्ट का यह फैसला मद्रास उच्च न्ययालय के एक फैसले के खिलाफ दायर अपील पर आया है जो हिंदू उत्तराधिकार कानून के तहत हिंदू महिलाओं और विधवाओं को संपत्ति अधिकारों से संबंधित था। सर्वोच्च न्ययालय ने अपने अहम फैसले में कहा कि बिना वसीयत के मृत हिंदू पुरुष की बेटियां पिता की स्व-अर्जित और अन्य संपत्ति पाने की हकदार होंगी और उन्हें परिवार के अन्य सदस्यों की मुकाबले वरीयता होगी।
जस्टिस एस अब्दुल नजीर और जस्टिस कृष्ण मुरारी की बेंच ने कहा कि हिंदू पुरुष र्निवसीयत मृत्यु हो जाए तो उसे विरासत में प्राप्त संपत्ति और खुद की अर्जित संपत्ति, दोनों में उसके बेटों और बेटियों को बराबर का हक होगा। कोर्ट ने ऐसा इसलिए कहा क्योंकि मिताक्षरा कानून में सहभागिता और उत्तरजीविता की अवधारणा के तहत हिंदू पुरुष की मृत्यु के बाद उसकी संपत्ति का बंटवारा सिर्फ पुत्रों में होगा और अगर पुत्र नहीं हो तो संयुक्त परिवार के पुरुषों के बीच होगा। सर्वोच्च न्ययालय ने साफ कहा है कि उसका यह आदेश उन बेटियों के लिए भी लागू होगा जिनके पिता की मृत्यु 1956 से पहले हो गई है। दरअसल, 1956 में ही हिंदू पर्सनल लॉ के तहत हिंदू उत्तराधिकार कानून बना था जिसके तहत हिंदू परिवारों में संपत्तियों के बंटवारे का कानूनी ढंग-ढांचा तैयार हुआ था। सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश से 1956 से पहले संपत्ति के बंटवारे को लेकर उन विवादों को हवा मिल सकती है जिनमें पिता की संपत्ति में बेटियों को हिस्सेदारी नहीं दी गई है। सर्वोच्च न्ययालय ने अपने आदेश में एक और स्थिति स्पष्ट की है। बेंच ने अपने 51 पन्नों में आदेश दिया कि अगर पिता र्निवसीयत मर जाएं तो संपत्ति की उत्तराधिकारी बेटी अपने आप हो जाएगी या फिर उत्तरजीविता की अवधारणा के तहत उसके चचेरे भाई को यह अधिकार प्राप्त नहीं होगा।